The Ultimate Guide To Shodashi
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कस्तूरीपङ्कभास्वद्गलचलदमलस्थूलमुक्तावलीका
षट्कोणान्तःस्थितां वन्दे देवीं त्रिपुरसुन्दरीम् ॥६॥
सानन्दं ध्यानयोगाद्विसगुणसद्दशी दृश्यते चित्तमध्ये ।
यहां पढ़ें त्रिपुरसुन्दरी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र संस्कृत में – tripura sundari ashtottarshatnam
After eleven rosaries on the very first working day of commencing While using the Mantra, it is possible to carry down the chanting to 1 rosary every day and chant 11 rosaries within the eleventh working day, on the last day within your chanting.
उत्तीर्णाख्याभिरुपास्य पाति शुभदे सर्वार्थ-सिद्धि-प्रदे ।
ഓം ശ്രീം ഹ്രീം ക്ലീം ഐം സൗ: ഓം ഹ്രീം ശ്രീം ക എ ഐ ല ഹ്രീം ഹ സ ക ഹ ല ഹ്രീം സ ക ല ഹ്രീം സൗ: ഐം ക്ലീം ഹ്രീം ശ്രീം
॥ अथ श्री त्रिपुरसुन्दरीवेदसारस्तवः ॥
The iconography serves for a point of interest for meditation and worship, permitting devotees to attach With all the divine Strength in the Goddess.
श्रींमन्त्रार्थस्वरूपा श्रितजनदुरितध्वान्तहन्त्री शरण्या
लक्ष्या या पुण्यजालैर्गुरुवरचरणाम्भोजसेवाविशेषाद्-
संक्रान्ति — प्रति मास जब सूर्य एक संक्रान्ति से दूसरी संक्रान्ति में परिवर्तित होता है, वह मुहूर्त श्रेष्ठ है।
इसके अलावा त्रिपुरसुंदरी देवी अपने नाना रूपों में भारत के विभिन्न प्रान्तों में पूजी जाती हैं। वाराणसी में राज-राजेश्वरी मंदिर विद्यमान हैं, जहाँ देवी राज राजेश्वरी(तीनों लोकों की रानी) के रूप में पूजी जाती हैं। कामाक्षी स्वरूप में देवी तमिलनाडु के कांचीपुरम में पूजी जाती हैं। मीनाक्षी स्वरूप में देवी का विशाल भव्य मंदिर तमिलनाडु के मदुरै में हैं। बंगाल के हुगली जिले में बाँसबेरिया नामक स्थान में देवी हंशेश्वरी षोडशी (षोडशी महाविद्या) नाम से पूजित हैं।
यह साधना करने वाला व्यक्ति स्वयं कामदेव के समान हो जाता है और वह साधारण व्यक्ति न रहकर लक्ष्मीवान्, पुत्रवान व स्त्रीप्रिय होता है। उसे वशीकरण की विशेष शक्ति प्राप्त होती है, उसके अंदर एक विशेष आत्मशक्ति check here का विकास होता है और उसके जीवन के पाप शान्त होते है। जिस प्रकार अग्नि में कपूर तत्काल भस्म हो जाता है, उसी प्रकार महात्रिपुर सुन्दरी की साधना करने से व्यक्ति के पापों का क्षय हो जाता है, वाणी की सिद्धि प्राप्त होती है और उसे समस्त शक्तियों के स्वामी की स्थिति प्राप्त होती है और व्यक्ति इस जीवन में ही मनुष्यत्व से देवत्व की ओर परिवर्तित होने की प्रक्रिया प्रारम्भ कर लेता है।